भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वाह कलियुग! / हेमन्त शेष

26 bytes added, 06:17, 17 जनवरी 2011
|संग्रह=अशुद्ध सारंग / हेमन्त शेष
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
वाह कलियुग!
 
काम पर जाते हुए
 
हम रोज़ प्रार्थना करते हैं
 
एक न एक शव को।
 
घर लौट कर शीशा देखते हैं
 
प्रणाम करते हुए डरते हैं
 
हम नित्य
 
प्रणाम करने वालों के लिए।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits