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** [[स्वप्न झरे फूल से / गोपालदास "नीरज"]]
** [[दिन दिवंगत हुए / कुँअर बेचैन]] योगदान [[deepak]] द्वारा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* यहाँ से नीचे आप कविताएँ जोड सकते हैं ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* दिन दिवंगत हुए रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुएरात घायल हुई, दिन दिवंगत हुएहम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहेरिक्त मन में नई प्यास भरते रहेरोज़ जिनके हृदय में उतरते रहेवे सभी दिन चिता की लपट पर रखेरोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुएदिन दिवंगत हुए ! शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहेनैन में ज्योति का दीप बाले रहेऔर जिनके दिलों में उजाले रहेअब वही दिन किसी रात की भूमि परएक गिरती हुई शाम की छत हुए !दिन दिवंगत हुए ! जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभीवे गए तो गए, फिर न लौटे कभीहै प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भीदिन कि जो प्राण के मोह में बंद थेआज चोरी गई वो ही दौलत हुए ।दिन दिवंगत हुए ! चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिलीरह गई जिंन्दगी की कली अधखिलीहम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिलीहर तरफ़ शोर था और इस शोर मेंये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।दिन दिवंगत हुए!  -डॉ० कुँअर बेचैन