भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरे गृह से सुन पडती गिरिवन गिरि-वन से आती
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
निशी दिन मेरे विपिनो में उडते रहते ।
 
कोलाहल से दूर शांत
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,279
edits