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|संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दूम मोहिउद्दीन
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थक के रह जाते हैं इस्तेदलाल <ref>दलील देना</ref> के जिस जा क़दमटूट जाता है पहुँच कर जिस जगह मन्तिक़ <ref>तर्क</ref> का दम ।
ख्च्वाबे ख़्वाबे अक्लो होश की मजहूल <ref>अज्ञात</ref> ताबीरों <ref>स्वप्न फल</ref> से दूर फ़लसफ़ी <ref>दार्शनिक</ref> की किस तरह और क्यों की ज़ंजीरों सेदूर । मेरे रहने का जहान-ए-जावेदानी<ref>शाश्वत संसार</ref> और हैदिल की दुनिया-ए-निहां<ref>छुपा हुआ</ref> की ज़िंदगानी और है । ख़ुद तराशीदा<ref>बनाया हुआ</ref> बुते नाज़ आफरी<ref>नाज़ करने वाला</ref> मेरा वजूद मेरी ज़ाते पाक मस्जूदे<ref>जिसके आगे सर झुकाया जाए</ref> जहाने हस्त ओ बूद<ref>वर्तमान व भूत</ref> । दूसरा कोई नहीं रहता, जहाँ रहता हूँ मैं,अपने सैलाबे ख़ुदी में आप ही बहता हूँ मैं । मेरे सजदे के लिए ही वक़्फ़<ref>अर्पण</ref> है मेरी जबीं<ref>माथा</ref> मेरी अक़्लीमे अना<ref>विवेकी अहं</ref> में दूसरा कोई नहीं ।
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