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रचता रहा
संगीत की कठिनतम रचनाएँ।
लेकिन आस्थाओं की
अनचाही/उग आई
खरपतवार के बीच
तुमने मुझे
जब-तब/बेकार
एक बार नहीं/अनेक बार
निरर्थक बोया
बिना सोचे बोते रहे
 
मुझे दोष मत दो -
कि मैं उगा नही
मैंने अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
जमीन में से उगाया-अपने आप को
सच बोलो !
सृजन में क्या शब्द सहयोग नहीं है ?
लेकिन अक्षरों की फसल
तुम काट कर घर ला पाए ?
नहीं न !
इतना पुरूषार्थ तुममें कहां था
नैतिकता, शब्द की नहीं संस्कार की होती है।
</Poem>
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