भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
रचता रहा
संगीत की कठिनतम रचनाएँ।
लेकिन आस्थाओं की
अनचाही/उग आई
खरपतवार के बीच
तुमने मुझे
जब-तब/बेकार
एक बार नहीं/अनेक बार
निरर्थक बोया
बिना सोचे बोते रहे
मुझे दोष मत दो -
कि मैं उगा नही
मैंने अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
जमीन में से उगाया-अपने आप को
सच बोलो !
सृजन में क्या शब्द सहयोग नहीं है ?
लेकिन अक्षरों की फसल
तुम काट कर घर ला पाए ?
नहीं न !
इतना पुरूषार्थ तुममें कहां था
नैतिकता, शब्द की नहीं संस्कार की होती है।
</Poem>