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एक देह / मंगलेश डबराल

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त्वचा आवाज़ों को सुनती है

ख़ामोशी की अपनी एक देह है

पैरों में भी निवास करती हैं संवेदनाएँ

पीठ की अपनी ही एक कहानी है

अभी-अभी दबी हथेली का

धीरे-धीरे उभरना

कुछ कहता है देर तक


(1990 में रचित)
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