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Kavita Kosh से
सच नहीं बोलते तो क्या होता
फँस गये गए हम ग़लतबयानी में
तंगदस्ती ने इस क़दर मारा
हो ना पाये पाए जवाँ जवानी में
आए पानी को बाँधने लेकिन
आप भी बह गए रवानी में
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