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स्वर्ग से अप्सराएँ उतारी हैं
स्वप्न भी खूब देखते हैं लोग
 
खुद इन्हें भी खबर नहीं इसकी
किन दिशाओं में चल पड़े हैं लोग
मन को मन के निकट नहीं लाते
देह पर देह थोपते हैं लोग
 
कैसी बस्ती है 'एहतराम' यहाँ
मर रहे हीं न जी रहे हैं लोग
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