भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
स्वर्ग से अप्सराएँ उतारी हैं
स्वप्न भी खूब देखते हैं लोग
खुद इन्हें भी खबर नहीं इसकी
किन दिशाओं में चल पड़े हैं लोग
मन को मन के निकट नहीं लाते
देह पर देह थोपते हैं लोग
कैसी बस्ती है 'एहतराम' यहाँ
मर रहे हीं न जी रहे हैं लोग
</poem>