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{{KKRachna
|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
}}
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<poem>
दुनिया के गम फिजूल की फिकरों से बच गए
अच्छा हुआ की तुम मेरे शेरोन से बच गए
कर्फ्यू-जदा इलाके में तुम लोग भी तो थे
तुम लोग कैसे भेड़ियों, कुत्तों से बच गए
हरगिज़ बयां न दीजिए बाहर अमाँ न थी
कहिये की घर में कैद थे खर्चे से बच गए
इक चूक सारे मुहरों को अभिशिप्त कर गई
फर्जी से आ पिटे जो पियादों से बच गए
सिक्कों की ओट ले के सरलता से 'एहतराम'
कातिल सभी पुलीस की नज़रों से बच गए
</poem>
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|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
|संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम
}}
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दुनिया के गम फिजूल की फिकरों से बच गए
अच्छा हुआ की तुम मेरे शेरोन से बच गए
कर्फ्यू-जदा इलाके में तुम लोग भी तो थे
तुम लोग कैसे भेड़ियों, कुत्तों से बच गए
हरगिज़ बयां न दीजिए बाहर अमाँ न थी
कहिये की घर में कैद थे खर्चे से बच गए
इक चूक सारे मुहरों को अभिशिप्त कर गई
फर्जी से आ पिटे जो पियादों से बच गए
सिक्कों की ओट ले के सरलता से 'एहतराम'
कातिल सभी पुलीस की नज़रों से बच गए
</poem>