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|रचनाकार=एहतराम इस्लाम
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बोझ ह्रदय पर भारी हो
पर मुख पर उजियारी हो

कुर्सी की टांगें न हिले
जंग चले बमबारी हो

अपना हिस्सा ले के रहे
तुम सच्चे अधिकारी हो

चम्बल का रास्ता क्यों चुन
सीधे सत्ताधारी हो

क्या मुश्किल है हत्या में
बस वर्दी सरकारी हो

या सुविधा का नाम न लो
या फिर भ्रष्टाचारी हो

तंत्र प्रजा के नाम चले
मेरी खुद मुख्तारी हो
</poem>