भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
186 bytes removed,
21:14, 5 फ़रवरी 2011
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : शीत लहरसर पर चढ़ल आजाद गगरिया<br> '''रचनाकार:''' [[विजेन्द्ररसूल]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत मेंठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन सर परबंदी हैं अपने कालचक्र मेंचढ़ल आजाद गगरिया, फिर भी वे तन करखड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत मेंसंभल के चल डगरिया ना ।
होते हैंएक कुइंयां पर दू पनिहारन, रहते सावधान जीवन जीना हैउनको अपने से एक ही, ऐसी व्याकुलता जगतीलागल डोरहै मन मेंकोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपतीकोई पाकिस्तान की ओरहैना डूबे, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैंना फूटे ई, पीना हैमिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....
अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता हैभद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारीहिन्दू दौड़े पुराण लेकर, कहाँ सतातामुसलमान कुरानपाला उनकोआपस में दूनों मिल-जुल लिहो, दाता उनका है, शास्त्र बताताएके रख ईमान है-- खरपतवारों सब मिलजुल के मध्य फूल कहाँ खिलता है मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना ।सर पर चढ़ल....
फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगीकह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाईहड्डीभारत के कोने-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी कोने में तिरंगा लहराईबांध के मिल्लत की पगड़िया ना ।सर पर चढ़ल....
</pre>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader