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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : सर पर चढ़ल आजाद गगरियाबसंत आया, पिया न आए<br> '''रचनाकार:''' [[रसूलमनोज भावुक]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
सर पर चढ़ल आजाद गगरियाबसंत आया, संभल के चल डगरिया ना । एक कुइंयां पर दू पनिहारनपिया न आए, एक ही लागल डोरपता नहीं क्यों जिया जलायेकोई खींचे हिन्दुस्तान की ओरपलाश-सा तन दहक उठा है,कोई पाकिस्तान कौन विरह की ओरआग बुझायेना डूबे हवा बसंती,ना फूटे ईफ़िज़ा की मस्ती, मिल्लत लहर की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....कश्ती, बेहोश बस्ती हिन्दू दौड़े पुराण लेकरसभी की लोभी नज़र है मुझपे, मुसलमान कुरानसखी रे अब तो ख़ुदा बचाएआपस में दूनों मिल-जुल लिहो पराग महके,एके रख ईमान पलाश दहके, कोयलिया कुहुके, चुनरिया लहकेसब मिलजुल के मंगल गावेंपिया अनाड़ी, भारत पिया बेदर्दी, जिया की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल....बतिया समझ न पाए नज़र मिले तो पता लगाऊं की तेरे मन का मिजाज़ क्या हैकह रसूल भारतवासी मगर कभी तू इधर तो आए नज़र से यही बात समुझाईमेरे नज़र मिलायेभारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई बांध अभी भी लम्बी उदास रातें, कुतर-कुतर के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....जिया को काटेअसल में ‘भावुक’ खुशी तभी है जो ज़िंदगी में बसंत आए</pre>
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