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{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले
|संग्रह=
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<poem>
मैं रास्ते भूलता हूँ
और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं
मैं अपनी नींद से निकल कर प्रवेश करता हूँ
किसी और की नींद में
इस तरह पुनर्जन्म होता रहता है
मैं रास्ते भूलता हूँ<br>एक जिन्दगी में एक ही बार पैदा होनाऔर इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं<br>एक ही बार मरनाजिन लोगों को शोभा नहीं देतामैं अपनी नीन्द उन्हीं में से निकल कर प्रवेश करता एक हूँ<br>किसी और की नीन्द में<br>इस तरह पुनर्जन्म होता रहता है<br><br>
एक फिर भी नक्शे पर जगहों को दिखाने की तरह ही होगामेरा जिन्दगी के बारे में एक ही बार पैदा होना<br>कुछ कहनाऔर एक ही बार मरना<br>बहुत मुश्किल है बतानाजिन लोगों को शोभा नहीं देता<br>मैं उन्हीं कि प्रेम कहाँ था किन-किन रंगों में से एक हूँ<br><br>और जहाँ नहीं था प्रेम उस वक़्त वहाँ क्या था
फिर भी नक्शे पर जगहों को दिखाने पानी, नींद और अँधेरे के भीतर इतनी छायाएँ हैंऔर आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह ही होगा<br>मेरा जिन्दगी के बारे में कुछ कहना<br>बहुत मुश्किल है बताना<br>इतनी गुत्थम-गुत्थाकि प्रेम कहाँ था किन किन रंगों में<br>एक दो को भी निकाल करऔर जहाँ हवा में नहीं था प्रेम उस वक्त वहाँ क्या था<br><br>दिखा सकता
पानी , नीन्द और अंधेरे के भीतर इतनी छायाएँ हैं<br>और आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह<br>इतनी गुत्थमगुत्था<br>कि एक दो को भी निकाल कर<br>हवा में नहीं दिखा सकता<br><br> जिस नदी में गोता लगाता हूँ<br>बाहर निकलने तक<br>या तो शहर बदल जाता है<br>या नदी के पानी का रंग<br>शाम कभी भी होने लगती है<br>और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता<br>जिनके कारण वमकता चमकता है<br>
अकेलेपन का पत्थर
</poem>
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