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ख़ून फिर ख़ून है / साहिर लुधियानवी
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14:22, 12 फ़रवरी 2011
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जुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
तुमने जिस ख़ून को मक़्तल में दबाना चाहा
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
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शमा जलती रहे तो बेहतर है।
Anilgaud
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