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जीवाश्म होने तक / पूरन मुद्गल

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|रचनाकार=पूरन मुद्गल
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<poem>
तुम मोहंजोदड़ो हो गए
तो क्या हुआ
वक्त ने धूल के दुशाले
डाल दिए तुम पर
इससे क्या !
वर्षों तक
मैंने तुम्हारा पीछा किया
तुम उठे तो-
किंतु
संवाद की कोई नदी
हमें छूकर नहीं गुज़री-
तुम्हारे साथ दफन भाषा का
कोई व्याकरण नहीं रचा गया
तभी तो तुम दिखाते हो-
एक चिड़िया का चित्र
किसी मछली की आकृति
या टूटे बर्तन का किनारा-
 
चिड़िया वैसी ही
जो आज भी मेरे कमरे में
घोंसला बनाने के लिए तिनका उठाए है
मछली वही
जो पानी के बिना तड़पती है
टूटे प्याले पर
प्यास के निशान हू-ब-हू वैसे
जो आज भी मेरे होंठों पर अंकित हैं
 
इसलिए तुम मरे नहीं
तुम मुझ में जीवित हो
जब तक कि मैं मोहंजोदड़ो नहीं बन जाता
 
इससे पहले कि मैं जीवाश्म बनूं
मैं देखना चाहता हूं-
चिड़िया का एक सुरक्षित नीड़
साफ पानी में तैरती मछली
और
एक भरे प्याले से छलकती तृप्ति का अहसास
 
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