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समझ मौत की वादियों से गुज़रता
चला जा रहा है ।सहर के तआकुब <ref>पीछा करता हुआ</ref> में में गिरता-उभरता चला जा रहा है । तेरी मंज़िलें तेरी नज़रों से ओझल मुसाफ़िर ।चले चल, चले चल, चले चल, चले चल ।  आता मेरी दुनिया को खराबात बनाता आँखों से पिलाता कभी होंटों से पिलाता ।
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