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उपमायें भी हटकर हों, कहने का हो अंदाज नया
शब्दों की दुनिया सजती है अलबेले फनकारों से
 
ऊधो से क्या लेना ’गौतम’ माधो को क्या देना है
अपनी डफली, सुर अपना, सीखो जग के व्यवहारों से {त्रैमासिक अभिनव प्रयास, जुलाई-सितम्बर 2009 / हिंदी-चेतना, अप्रैल 2010}</poem>
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