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सूर्य -स्तुति / तुलसीदास

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2सूर्य '''सूर्य स्तुति ''' दीन दयालु दिवाकर देवा। कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा।।1हिम तम-करि-केहरि करमाली। दहन दोष दुख दुरित रूजाली।2। कोक कोकनद लोक प्रकासी। तेज प्रताप रूप् रस-रासी।3।सारथि-पंगु, दिब्य रथ गामी। हरि संकर बिधि मूरति स्वामी।4।बेद पुरान प्रगट जस जागै। तुलसी राम-भगति बर मांगै।5।
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