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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
|संग्रह=नक़्शे-फ़रियादी / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
}}
{{KKCatNazm}}<poem>फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार नहीं कोई नहींराहरौ<brref>पथिक</ref>रहरौ होगा , कहीं और् और चला जायेगा<br>ढल चुकी रात बिख़रने , बिखरने लगा तारों का ग़ुबार<brref>धूल</ref>लड़खड़ाने लगे अएवानों में ख़्वाबीदा चिराग़ऐवानों<brref>महलों</ref> में ख़्वाबीदः चिराग़सो गई रस्ता रस्तः तक -तक के हर एक रहगुज़ार<br>हरइक राहगुज़ारअजनबी ख़ाक ने धुंदला धुँदला दिये क़दमों के सुराग़<br>गुल करो शमेँ बड़ा शम्एँ, बढ़ा दो मैमय-ओ-मीना-ओ-अयाग़<brref>शराब, सुराही और प्याला</ref>अपने बेख़्वाब बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो<brref>ताला लगाना</ref> कर लोअब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा<br/poem>{{KKMeaning}}