Changes

जब उजाले की कहीं कोई, किरण दिखती नहीं,
तितमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
हर गली में हो रहे हैं
कोबरों के विषवमन
मंजिलों तक जा पहुंचने की डगर मिलती नहीं,
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
इनद्रधनुषी करतबों में बात की बाजीगरी
पंख नुचने से हुयी है आज चिडिया अधमरी
व्यथित मन में जब नयी सम्भावना खिलती नहीं
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
 
चांदनी के नाम पर बंटती
हर कहीं पर दोपहर
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits