भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<poem>
 
'''पद 11 से 20 तक'''
तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं।
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं।।
 
(13)
बिग्यान-भवन, गिरिसुता-रमन।
कह तुलसिदास मम त्राससमन।।
 
(15)
शुंभु -निःशुंभ-कुम्भीश रण-केशरिणि, क्रोध-वारीश अरि -वृन्द बोरे।4।
निगम आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-कथन, उर्विधर करत जेहि सहस जीहा।
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज, राम घनश्याम तुलसी पपीहा।5।
(16)
रघुपति-पद परम प्रेम, तुलसी यह अजल नेम,
देहु ह्वै प्रसन्न पाहि प्रणत-पालिका।।
 
(17)
(19)
 
श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।
बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।
(20)
 
श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।
सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।
महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।
तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।
 
 
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits