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दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 112

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'''दोहा संख्या 101 111 से 110120'''श्री संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास। ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।101।
बिलग बिलग सुख संग दुख जनम मरन सोइ रीति। तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान।रहिअत राखे रिनिया राजा राम कें गए ते उचित अनीति।102। भे धनिक भए हनुमान।111।
जायँ कहब करतूति बिनु जायँ जोग बिन छेम।कियो सुसेवक धरम कपि कृतग्य जियँ जानि । तुलसी जाँय उपाय सब बिना राम पद प्रेम।103। जोरि हाथ ठाढ़े भए बरदायक बरदानि।112।
लोग मगन सब जोगहीं जोग जायँ बिनु छेमभगत हेतु भगवान प्रभु रा धरेउ तनु भूप। ।त्यों तुलसी के भावगत राम प्रेम बिनु नेम।104। किये चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप।113।
राम निकाई रावरी हैं सबही केा नीक। ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार। जौ यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक।105। सोइ सच्चिदानंदघन कर नर चरित उदार।114।
तुलसी राम जो आदर्यो खोटो खरो खरोइ। हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान। दीपक काजर सिर धर्यो धर्यो सुधर्यो धरोइ।106। जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान।115।
तनु बिचित्र कायर बचन अहि अहार मन घोर। सुद्ध सच्चिदानंदमय कंद भानुकुल केतु। तुलसी हरि भए पच्छधर ताते कह सब मोर।107। चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु।116।
लहइ न फूटी कौड़िहू को चाहै केहि काज। बाल बिभूषन बसन बर धूरि धूसरित अंग। सो तुलसी महँगो कियो राम गरीब निवाज।108। बालकेति रघुबर करत बाल बंधु सब संग।117।
घर घर माँगे टूक पुनि भूपति पूजे पाय। अनुदित अवध बधावने नित नव मंगल मोद। जे तुलसी तब राम बिनु ते अब राम सहाय।109। मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद।118।  राज अजिर राजत रूचिर कोसलपालक बाल। जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल।119।  नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ। ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ।120।
तुलसी राम सुदीठि तें निबल होत बलवान।
बैर बालि सुग्रीव के कहा कियो हनुमान।110।
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