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Kavita Kosh से
हम-तुम मिल ही जाते किसी मोड़ पर इक रोज़
जो इश्क़ में वस्लतो-क़ुर्ब</ref>मिलन और समीपता</ref> का दस्तूर होता
हैं आलम में रंग, नये-पुराने, यादों के