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|रचनाकार = हबीब जालिब
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इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
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