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होली / तारा सिंह

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|रचनाकार=तारा सिंह
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{{KKAnthologyHoli}}
मिटे धरा से ईर्ष्या, द्वेष, अनाचार, व्यभिचार<br>
जिंदा रहे जगत में, मानव के सुख हेतु<br>