भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नहीं दरिया तो हो सराब कोई
 
रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई
 
कौन सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है
उसका रखे हिसाब कोई
 फिर मैं सुन्‍ने सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई