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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
}}
[[Category:नवगीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>मेरा धन-- मेरा क्वांरापनक्वाँरापन
मुझे छोड़ सबको सुख होगा
 सब लौटा पाएंगे पाएँगे निजपन तुम चांदचाँद-सी बहू पाओगे 
पिता करें स्वीकार वधू-धन
 
रात-रात भर नाच-नाचकर
 
विदा हो चलेंगे स्नेही-जन
 
पर कैसे लौटा पाऊंगी
 
खोया जो मेरा अपनापन ?
 
मेरा धन
 मेरा क्वांरापनक्वाँरापन</poem>
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