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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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मुझे छोड़ सबको सुख होगा
सब लौटा पाएंगे पाएँगे निजपन तुम चांदचाँद-सी बहू पाओगे
पिता करें स्वीकार वधू-धन
रात-रात भर नाच-नाचकर
विदा हो चलेंगे स्नेही-जन
पर कैसे लौटा पाऊंगी
खोया जो मेरा अपनापन ?
मेरा धन
मेरा क्वांरापनक्वाँरापन</poem>
