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Kavita Kosh से
कैसा है यह समुद्र ?
पार करना तो दूर
एक अंजुरी अँजुरी पानी भी
नहीं पी पाया अब तक
रह गया प्यासा का प्यासा
कहीं गहरे अंतर्मन में
घूमती मेरी इंद्रियां थीं
शब्द संवेदनाओं के तन्तुओं को जोडतीजोड़ती
इधर ज्ञान
उधर विज्ञान
पत्नी खो जाती प्रेमचंद या शरतचंद में
तभी इस्मत चुगताई अपनेपन से झिझोड़ोतीझिंझोड़ती
दूर से देखती मन्नू और मैत्रेयी
बाट जोहती