भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyNewYear}}जेठ की धूप में तपी हुई<br />
आषाढ़ की फुहारों में भीगकर<br />
कार्तिक और अगहन के फूलों को पार करती हुई<br />