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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 7

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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद पद 61 से 70 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 61]]|आगे=विनयावली() * [[पद 61 से 70 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 82]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 61 से 70 तक/ तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 61 से 70 तक'''/ तुलसीदास / पृष्ठ 4]] (64) बंदौ रधुपति करूना-निधान। जाते छूटै भव-भेद-ग्यान।। रघुवंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस। सेवत * [[पद-पाथोज-भृंग। लावन्य बपुष अगनित अनंग।। अति प्रबल मोह-तम-मारतंड। अग्यान-गहन-पावक प्रचंड़।। अभिमान-सिंधु-कुंभज उदार। सुररंजन, भंजन भूमिभार।। रागासि-सर्पगन-पन्नगारि। कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारि।। भव-जलधि-पोत चरनारबिंद। जानकी-रवन आनंद-कंद।। हनुमंत-प्रेम-बापी-मराल। निष्काम कामधुक गो दयाल।। त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम। कह तुलसिदास बिश्राम-धाम।। (65)  जय राम राम रमु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा। रामनाम-नवनेह-मेहको, मनं हठि होहि पपीहा।। सब साधन-फल कूप-सरित-सर, सागर-सलिल-निरासा। रामनाम-रति-स्वाति-सुधा-सुभ-सीकर प्रेमपियासा।। गरजि,तरजि, पाषाण बरषि पवि, प्रीति परखि जिय जानै। अधिक अधिक अनुराग उमंग उर, पर परमिति पहिचानै।। रामनाम-गति, रामनाम-मति, राम-नाम अनुरागी। ह्वै गये, हैं जे होहिंगे, तेइ त्रिभुवन गनियत बड़भागी।। एक अंग मग अगमु गवन कर, बिलमु न छिन छिन छाहैं। तुलसी हित अपनो अपनी दिसि, निरूपधि नेम निबाहै।। (66)  राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे। घोर भव-नीर-निधि नाम निज नाव रे।। एक ही साधन सब रिद्वि -सिद्वि साधि रे। ग्रसे कलि-रोग जोग -संजम-समाधि रे।। भलेा जो है, पोच जो है, दहिनो जो, बाम रे। राम-नाम ही सों अंत सब ही को काम रे।। जग नभ-बाटिका रही है फलि फूलि रे। धुंवाँ कैसे धौरहर देखि तू न भूलि रे।। राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे। तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।<61 से 70 तक /poem>तुलसीदास / पृष्ठ 5]]
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