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रितु ग्रीषम की प्रति बासर ’केसब’ खेलत हैं जमुना जल में ।
इत गोप-सुता, उहिं पार गोपाल, बिराजत गोपन के गल में ॥
अति बूढ़ति हैं गति मीनन की, मिलि जाय उठें अपने थल में ।
इहिं भाँति मनोरथ पूरि दोउ जन, दूर रहैं छवि सों छल में ॥
</poem>
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