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बिना जाने<br />और पहचाने<br />साथ गीतों के सफर सफ़र में है,<br />दूर तक<br />प्रतिबिम्ब कोई भी नहीं<br />मगर वो मेरी नजर में है,<br />एक जंगल -सा<br />हमारा मन<br />वो पलाशों -सी दहकती है।<br />है ।
वो तितलियों<br />और परियों -सी<br />उड़ा करती है फिजाओं में,<br />वो क्षितिज पर<br />इन्द्रधनुओं -सी<br />और हम उसके छलाओ में,<br />एक हीरे की<br />कनी बनकर<br />वो अंधेरों अँधेरों में चमकती है।<br />है ।
एक नीली<br />पंखुरी पर फूल की<br />होठ थे किसके गुलाबी दिख रहे,<br />एक मुश्किल -सा<br />प्रणय का गीत<br />सिर्फ यादों के सहारे लिख रहे,<br />डायरी पर<br />लिख रहा हूं हूँ मैं<br />चूड़ियों -सी वो खनकती है।है ।<br /poem>