भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोहा / एकांत श्रीवास्तव

43 bytes removed, 20:15, 27 मार्च 2011
|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जंग लगा लोहा पांव में चुभता है<br>तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ<br>लोहे से बचने के लिए नहीं<br>उसके जंग के संक्रमण से बचने के लिए<br>मैं तो बचाकर रखना चाहता हूं<br>हूँउस लोहे को जो मेरे खून में है<br>जीने के लिए इस संसार में<br>रोज़ लोहा लेना पड़ता है<br>एक लोहा रोटी के लिए लेना पड़ता है<br>दूसरा इज़्ज़त के साथ<br>उसे खाने के लिए<br>एक लोहा पुरखों के बीज को<br>बचाने के लिए लेना पड़ता है<br>दूसरा उसे उगाने के लिए<br>मिट्टी में, हवा में, पानी में<br>पालक में और खून में जो लोहा है<br>यही सारा लोहा काम आता है एक दिन<br>फूल जैसी धरती को बचाने में<br><br/poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,708
edits