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01:16, 28 मार्च 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ग्वाल
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[[Category:पद]]
<poem>बरफ-सिलान की बिछायत बनाय करि,
सेज संदली पै कंज-दल पाटियतु है ।
गालिब गुलाब जल-जाल के फुहारे छूटें,
खूब खसखने पर गुलाब छाँटियतु है ॥
ग्वाल कवि सुंदर सुराही फेरि, सोरा में-
औरा कौ बनाय रस,प्यास डारियतु है ।
हिमकर-आननी हिवाला सी हिए तें लाय,
ग्रीषम की ज्वाला के कसाला काटियतु है ॥
</poem>