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दोपहर के अलसाये पल / लावण्या शाह
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{{KKRachna
|रचनाकार=लावण्या शाह
}}{{KKCatKavita
}}
तुम्हारी समंदर-सी गहरी आँखोँ में,<br>
फेंकता पतवार मैं, उनींदी दोपहरी मेँ -<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
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