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61 से 70 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4

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राम-नाम प्रेम-परमारथको सार रे।
राम-नाम तुलसीको जीवन-अधार रे।5।
 
(68),
 
राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै।
तौलौं , तू कहूँ जाय, तिहूँ ताप तपिहै।1।
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