भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं
तुम्हीं झलके, हे महाकवि,
सघन तम की आंख बन मेरे लिए,
अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये-
जगत के उन्माद का
परिचय लिए,-
और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम,
हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में
अखिल का परिणय लिए-
प्राणमय संचार करते शक्ति औ' छवि के मिलन का हास मंगलमय;
मधुर आठों याम
विसुध खुलते
कंठस्वर में तुम्हारे, कवि,
एक ऋतुओं के विहंसते सूर्य!
काल में (तम घोर)-
बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह!
छू, किया करते
आधुनिकतम दाह मानव का
साधना स्वर से
शांत-शीतलतम ।
जानता क्या मैं-
हृदय में भरकर तुम्हारी सांससाँस-
किस तरह गाता,
(ओ विभूति परंपरा की!)
समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं कि जितना चाहता हूंहूँ,
महाकवि मेरे !
(1939 में विरचित,'कुछ कविताएंकविताएँ' नामक कविता-संग्रह से)</poem>