भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
भूलकर जब राह- जब-जब राह...भटका मैं
 
तुम्हीं झलके, हे महाकवि,
 
सघन तम की आंख बन मेरे लिए,
 
अकल क्रोधित प्रकृति का विश्वास बन मेरे लिये-
 
जगत के उन्माद का
 
परिचय लिए,-
 
और आगत-प्राण का संचय लिए, झलके प्रमन तुम,
 
हे महाकवि! सहजतम लघु एक जीवन में
 
अखिल का परिणय लिए-
 
प्राणमय संचार करते शक्ति औ' छवि के मिलन का हास मंगलमय;
 
मधुर आठों याम
 
विसुध खुलते
 
कंठस्वर में तुम्हारे, कवि,
 
एक ऋतुओं के विहंसते सूर्य!
 
काल में (तम घोर)-
 
बरसाते प्रवाहित रस अथोर अथाह!
 
छू, किया करते
 
आधुनिकतम दाह मानव का
 
साधना स्वर से
 
शांत-शीतलतम ।
 हांहाँ, तुम्हीं हो, एक मेरे कवि : 
जानता क्या मैं-
 हृदय में भरकर तुम्हारी सांससाँस
किस तरह गाता,
 
(ओ विभूति परंपरा की!)
 समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं कि जितना चाहता हूंहूँ
महाकवि मेरे !
(1939 में विरचित,'कुछ कविताएंकविताएँ' नामक कविता-संग्रह से)</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,142
edits