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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यन्त दुष्यंत कुमार
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<poem>
हर उभरी नस मलने का अभ्यास
रुक रुककर चलने का अभ्यास
छाया में थमने की आदत
यह क्यों ?
हर उभरी नस मलने का अभ्यास<br>जब देखो दिल में एक जलनरुक रुककर चलने का अभ्यास<br>उल्टे उल्टे से चाल-चलनछाया में थमने की आदत<br>सिर से पाँवों तक क्षत-विक्षतयह क्यों?<br><br>
जब देखो दिल में एक जलन<br>उल्टे उल्टे से चाल-चलन<br>सिर से पाँवों तक क्षत-विक्षत<br>यह क्यों?<br><br> जीवन के दर्शन पर दिन-रात<br>पण्डित विद्वानों जैसी बात<br>लेकिन मूर्खों जैसी हरकत<br>यह क्यों?<br><br/poem>
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