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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,<br>
किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?<br>
किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,<br>
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?<br><br>
 
कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?<br>
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।<br><br>
 
फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !<br>
ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!<br>
सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,<br>
दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।<br><br>
 
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,<br>
ज्यों का त्यों खड़ा है, आज भी मरघट संसार ।<br><br>
वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है <br>