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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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दुल्हन के लाल जोडे. में रंगा रंगीन गुलमोहर।
प्रिया के हाथ की मेहन्दी में रचता रंग गुलमोहर॥
यह बिंदिया में चमकत्ता चांद सा आकार लेकर के।
बहकता नींद में बनकर घटाओं सा यह गुलमोहर ॥
यह झुमको में झुमकता अरु दमकता मांग-सिन्दुर में ।
यह कंगनों में खनकता प्यार का इज़हार गुलमोहर ॥
कभी जूडे में सजता, आंख की लाली में बसता ये ।
लिपटता है कमर से करधनी सा प्यारा गुलमोहर ॥
चली इठलाती जब वो पांव की पायल करे छम-छम।
यह सजनी के महावर में भी रचता रंग गुलमोहर
उषा की लाली में उगता ,सूर्य के ढ.लने पर भी ये
दुपहरी धूप में भी खिल-खिलाता प्यारा गुलमोहर ॥
प्रिया के आने का आभास ज्यूं ही इसको मिलता है
तो झर झर के बिछाता प्यार अपना प्यारा गुलमोहर ।
धरा अरु आसमां के बीच की दूरी बहुत है पर ।
मिलन के इस क्षितिज में रंग भरता प्यारा गुलमोहर॥
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