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चमक / कुमार सुरेश

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== चमक
<poem>बेटी रंग भरती है
रेलगाड़ी हवाई जहाज
सूरज चाँद में
अपनी कल्पनाओं में
रंग भरता हूँ में

बेटी पकाती हैं
नन्हे बर्तनों में
झूठ मूंठ का दालभात
खाकर तृप्त होता हूँ में

बेटी पहनती है
माँ के दुपट्टे को
साड़ी बनाकर
उम्मीद पहनता हूँ में

बेटी बात करती है
कुछ मेरी तरह
लाड से कुछ अटपटा सा
बोलता हूँ में

मुझ में भी कुछ
बेटी की चमक है
थोडा सा बेटी में
चमकता हूँ में
poem> ==
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