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बादल! मुझसे बोलो!
बन्द रन्ध्र सब खोलो!<br />रोम रोम में बजो<br />
हमारे हो लो!
मिट्टी की यह छुअन<br />तुम्हारी, उमड़े.<br />गन्ध बने स्मृति की-<br />
व्याकुल, बोलो!
जी भर जी को धो लो!
</poem>
