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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
सुनो ! ओ हमें जन्म देने वाले !
हम तुम्हारे ऋणी आत्मज नहीं
क्षणजीवी सच्चिदानंद के मूर्त रूप हैं !

तुम्हारे
हित-संदर्भ में
हमारा
कुछ भी करना या सोचना
कर्तव्य नहीं
आदमीयत है !
रूढ़ अर्थ बोध के अभाव में
इसे कुछ और भी कहा जा सकता है !
किन्तु;
हम असमर्थ न होते हुए भी
उसे संज्ञा नहीं देना चाहते !
सड़क पर
यों ही रुक कर
नीचे देखना
यात्रा की गति को खण्डित कर देना है !
और हम ऐसा कोई भी काम
करने की स्थिति में नहीं हैं !
सुनो ! ओ हमें जन्म देने वालों !
(1965)
</poem>
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