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{{KKRachna
|रचनाकार=तेजेन्द्र शर्मा
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<poem>
पहली दीवाली
उस प्रजा के लिए
कितनी थी आसान
भलाई आैर और बुराई
की पहचान।
होता था-
बस अच्छा
आैर और बुरा
पूरी तरह से बुरा।
मिलावट
राम आैर और रावण में
होती नहीं थी
उन दिनों।
रावण रावण रहता
आैर और राम राम।
बस एक बात थी आम
समस्या हमारी है
हमारे युग के
धमर् आैर अधमर्धर्म और अधर्म
हुए हैं कुछ ऐसे गड़मड़
कि चेहरे दोनो के
रावण पर जीत राम की
यहां हैं बुश
आैर और हैं सद्दाम
दोनों के चेहरे एक
कहां हैं राम ?
</poem>