भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=साहस गाथा / वरवर राव
}}
{{KKCatKavita}}
[[Category:तेलुगु भाषा]]
<poem>
'''बैंजामिन मालेस की याद में'''
जब प्रतिगामी युग धर्म
घोंटता है वक़्त के उमड़ते बादलों का गला
तब न ख़ून बहता है
न आँसू ।
वज्र बन कर गिरती है बिजली
उठता है वर्षा की बूंदों से तूफ़ान...
पोंछती है माँ धरती अपने आँसू
जेल की सलाखों से बाहर आता है
कवि का सन्देश गीत बनकर ।
कब डरता है दुश्मन कवि से ?
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हिं
वह कै़द कर लेता है कवि को ।
फाँसी पर चढ़ाता है
फाँसी के तख़्ते के एक ओर होती है सरकार
दूसरी ओर अमरता
कवि जीता है अपने गीतों में
और गीत जीता है जनता के हृदयों में ।
रचनाकाल : 23 अक्तूबर 1985
</poem>