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(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए तीन कविताएँ)
'''अकड़'''
रंग बरंगे -बिरंगे पहाड़
रूह न रागस
ढोर न डंगर
न बदन पे जंगल......
देखो तो कैसे
ठुक से खड़े हैं
पर ज़रा सोचो गुरुजी
जब निकल आयेगी आएगा
इस की छाती मे एक छेद
और घुस आएंगे आएँगे इस स्वर्ग मे
मच्छर
साँप बन्दर
तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे
अकड़ू
और खामोश ख़ामोश ?
1996
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