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आईना रोज़ संवरता कब है / कविता किरण
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12:01, 22 अप्रैल 2011
हो न मर्ज़ी अगर हवाओं की
रेत पर
नम
नाम
उभरता कब है
लाख चाहे ऐ 'किरण' दिल फ़िर भी
दर्द वादे से मुकरता कब है
</poem>
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