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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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१-माया से कारोबार है,
माया से ही बाज़ार है।
माया कमाने के लिए,
माया का ही इश्तहार है॥

२-माया से ही चूल्हा जले,
माया से ही माया हंसे।
माया से हर रिश्ते जुड़े,
माया के संग सब ही चलें॥

३-माया को पाने वास्ते ही,
बेटी-बहिन देते हैं बेंच।
इक पदोन्नति के लिए,
पत्नी को कर देते हैं भेंट॥

४-माया पहनाये वस्त्र भी,
माया उतारे वस्त्र भी।
माया से नाचे मल्लिका,
मंच पर निर्वस्त्र भी॥

५-माया ने खुद को बेंच ड़ाला,
माया कमाने के लिए।
कोई विपाशा, मंदिरा कोई,
रूप क्या-क्या धर लिए॥
<poem>
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