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'''खड़े नियामक मौन'''
 
घुटने टेके खड़े नियन्ता
खड़े नियामक मौन
घात लगाये लगाए कुर्सी बैठे
टट्टू भाड़े वाले
अपनी बातो में वादों के
सब्जबाग सब्ज़बाग हैं पाले सुरसा -सी बढ़ती आबादी गाफिल गाफ़िल लाल तिकोन
ढूढ़ ढूँढ़ रही रह आँख हवा में
एक यही प्रश्नोत्तर
इतनी बड़ी हवेली आखिर आख़िर
कब किसने की खँडहर
बन-बबूल से हुए पराजित
लँगड़ा हाथी, टूटी ढालें
कागज काग़ज़ की तलवारें
जंग जीतने चले समय की
लेकर थोथे नारे
घबरायी नजरों नज़रों से ताके
घिरी चिरैया सोन
घुटने टेके खड़े नियन्ता
खड़े नियामक मौन
 
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