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क्या मालूम था
श्रम के हाथेंा हाथों रूखी -सूखी रोटी होगी नंगे होगे पांव होंगे पाँव, बदन पर केवल फटी लंगोटी होगी पानी बिना सूख जायेगी जाएगी
उनके सपनों की फुलवारी
हिस्से में आयेगी आएगी केवल
चिन्ता भूख और बेकारी
खाली होगा पेट, दिनोदिन
खाल पीठ की मोटी होगी वोटों के रगडे झगडे रगड़े-झगड़े में बंट जायेंगे बँट जाएँगे उनके कुनवे कुनबे घिस जायेंगे जाएँगे रोज कचेेहरी रोज़ कचहरी
जाकर पैरों के तलवे
होगा शीश पांव पाँव पर उनके
जिनकी तबियत छोटी होगी
लाठी के साये साए में उनको
अपना जीवन जीना हेागा
छत के नाम शीश नभ होगा
क्या मालूम था श्रम के हाथों
रूखी -सूखी रोटी होगी।होगी ।
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